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“ध्यान पहले एक वर्जित साधना मानी जाती थी, आज इसे वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया गया

बेंगलुरु, 17 दिसंबर 2025:

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर, पिछले वर्ष दुनिया भर से 85 लाख से अधिक लोगों ने एक साथ ध्यान कर एक ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसी पृष्ठभूमि में, वैश्विक आध्यात्मिक गुरु और मानवतावादी नेता गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा मुख्यालय से आज के अशांत और बेचैन होते संसार के लिए ध्यान को अपनाने का आह्वान किया।

अपने संबोधन में गुरुदेव ने कहा कि ध्यान केवल व्यक्तिगत कल्याण की साधना नहीं है, बल्कि उन समाजों के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है, जो तनाव, संघर्ष, अनिश्चितता और भावनात्मक पीड़ा से जूझ रहे हैं।

दूसरे विश्व ध्यान दिवस के उत्सवों की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र जिनेवा में ‘विश्व शांति के लिए ध्यान’ विषय पर गुरुदेव के विशेष संबोधन से हुई। यह कार्यक्रम भारत के स्थायी मिशन, जिनेवा द्वारा द आर्ट ऑफ लिविंग के सहयोग से आयोजित किया गया। ऐसे समय में, जब सभी आयु वर्गों और भौगोलिक सीमाओं के पार चिंता, बर्नआउट और अकेलेपन की समस्या बढ़ रही है, गुरुदेव का संदेश इस बात पर केंद्रित था कि स्थायी समाधान केवल बाहरी उपायों से नहीं, बल्कि मानव मन को स्थिर करने से भी संभव है।

गुरुदेव ने कहा,

“ध्यान अब दुनिया के लिए कोई विलासिता नहीं रह गया है। जब हमारी एक तिहाई आबादी अकेलेपन से और लगभग आधी आबादी मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझ रही है, तब हमें ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता है जो हमें स्वयं से जोड़ सके और भीतर जमा तनाव को मुक्त कर सके। यहीं ध्यान की भूमिका सामने आती है।”

माइंडफुलनेस और ध्यान के अंतर को समझाते हुए उन्होंने कहा,

“माइंडफुलनेस ड्राइववे है और ध्यान आपका घर। ध्यान आपको भीतर गहराई तक ले जाता है और वह शांति देता है जिसकी आज सख्त आवश्यकता है। यह कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है। ध्यान तो बस मन के कंप्यूटर में जमा अनावश्यक फ़ाइलों को डिलीट करने जैसा है।”

उन्होंने यह भी कहा कि “हम सभी ऊर्जा हैं,” और श्रोताओं से इस पर विचार करने का आग्रह किया कि यह ऊर्जा क्या सामंजस्य और सौहार्द उत्पन्न कर रही है। “ध्यान हमारे चारों ओर आवश्यक सामंजस्य रचता है और हमारी तरंगों को शुद्ध करता है,”

उन्होंने जोड़ा।

पिछले वर्ष 21 दिसंबर को ‘द वर्ल्ड मेडिटेट्स विद गुरुदेव

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