जो लोग सुखविंदर सिंह सुक्खू को सियासत में अनाड़ी समझते थे उन्हें अब शायद पता चल गया होगा कि वह राजनीति में खिलाड़ियों के भी खिलाड़ी हैं । आपको याद होगा जब 2022 में विधानसभा के चुनाव में मतदान हुआ उसके बाद परिणाम में काफी समय था उस दौरान पत्रकारों ने वर्तमान लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह से सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों पर सवाल किया था तो उन्होंने बड़े ही रूखे और व्यंग्यात्मक अंदाज में उल्टा सवाल पूछते हुए कहा था कि सुक्खू-दुक्खू कौन है । जब परिणाम आए तो कांग्रेस पार्टी ने बहुत बड़ी जीत हासिल की और सवाल फिर मुख्यमंत्री के पद के लिए दावेदारी पर उठता हुआ नजर आया । उस समय कई नामों पर विचार हुआ लेकिन आखिर में कांग्रेस आला कमान ने सुखविंदर सिंह सुक्खू को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी सौंप दी । कांग्रेस पार्टी ये सुख ज़्यादा दिन नहीं भोग सकी । वैसे भी सुक्खू सरकार अब तक की अकेली ऐसी सरकार है जिसने अपने हनीमून पीरियड का आनन्द नहीं भोगा । वजह थी चुनाव पूर्व की कांग्रेस पार्टी अजीबो गरीब गारंटियां । खासकर प्रदेश की हर महिला को हर महीने 1500 रुपए की पेंशन जो कतई व्यवहारिक नहीं थी । और भी जैसे ओ पी एस लागू करना, 300 यूनिट मुफ्त बिजली, हर साल 1 लाख युवाओं को रोजगार देना, किसानों से गोबर खरीदना और 100 रुपए किलो के हिसाब से दूध खरीदने जैसी कई गारंटियां । उनमेंसे भी अधिकतर को पहली ही केबिनेट में लागू करने का दबाव । सच कहें तो सुक्खू के सर वास्तव में कांटों का ताज सजा था जिसे न वो उतार पा रहे थे और न ही सजा पा रहे थे । खैर बड़ी टालमटोल के बाद केबिनेट की बैठक हुई तो जनता और विपक्ष सहित हर तरफ से वादों को निभाने का चौतरफा कष्टकारी दबाव । कुछ गारंटियों को पूरा कुछ को आधा अधूरा कुछ को जल्द तो कुछ को चरणबद्ध तरीके से पूरे करने के वादे के साथ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू आगे बढ़ ही रहे थे कि 40 अपने विधायकों और तीन निर्दलीय विधायकों वाली पूर्ण बहुमत की सरकार के बावजूद कांग्रेस सरकार के डेढ़ वर्ष के कार्यकाल से पहले ही अल्पमत की कगार पर आ गई । इसमें कांग्रेस पार्टी के ही छह विधायकों ने पहले तो राज्यसभा के लिए पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ मतदान किया और उसके बाद पार्टी को भी अलविदा कह दिया इस मामले में मुश्किल में फंसी सरकार को बचाने का श्रेय केवल और केवल विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया को जाता है, जिन्होंने विधानसभा के भीतर बेहद चतुराई से बजट भी पास करवा दिया और सरकार को गिरने से भी बचा लिया । लेकिन ये भारतीय जनता पार्टी ने और खुद भाग नेताओं ने इसके पीछे होली लॉन्च के हाथ होने की बात कही इस पर ना तो मुख्यमंत्री ना प्रदेश अध्यक्ष और ना ही लोक निर्माण मंत्री की ओर से किसी तरह की सफाई या स्पष्टीकरण किया गया लेकिन इस पूरे प्रकरण के बाद कांग्रेस सरकार कि इस दयनीय हालत के लिए कहीं ना कहीं होली लॉस खास को तौर पर विक्रमादित्य सिंह को जिम्मेदार ठहराया गया अब बारी उपचुनाव और लोकसभा चुनाव की आई और यहीं से शुरू होती है मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखों की सियासाठी दाब पेज पार्टी की ओर से पहले तो राज्य सरकार को बचाने के लिए
कांग्रेस ने लोकसभा के चुनाव में किसी भी विधानसभा सदस्य को न उतरने की योजना बनाई ताकि कांग्रेस सरकार के जाने की किसी तरह की कोई गुंजाइश विधानसभा उपचुनाव के बाद ना रहे लेकिन एकाएक केंद्रीय नेतृत्व ने और प्रदेश के बड़े नेताओं ने शिमला और मंडी संसदीय सीटों पर पर चुने हुए विधायकों को चुनावी रण में उतार दिया कांग्रेस ने मंडी से लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह और शिमला से विनोद सुल्तानपुरी को अपना प्रत्याशी बनाया है अब जरा देखिए यदि विक्रमादित्य सिंह लोकसभा का चुनाव जीत जाते हैं तो सुखविंदर सिंह सुक्कू के रास्ते का कांटा प्रदेश की राजनीति से खुद ब खुद निकल जाता है और अगर किसी कारणवश विक्रमादित्य सिंह चुनाव हार जाते हैं तो हॉली लॉज खासकर विक्रमादित्य सिंह की साख दांव पर लग जाती है और उनका कद भी प्रदेश की राजनीति में काफी कम हो जाएगा तो इस तरह से सुखविंदर सिंह सुकून एक तीर से दो निशाने लगाए हैं और अपने दोनों ही हाथ में लड्डू रखें या यूं कहें की मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुख की पांचो उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में है सुखविंदर सिंह सुक्कू और होली लॉन्च के बीच सियासी टकराव किसी से छुपा नहीं है सुखविंदर सिंह सुकू जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे उसे समय तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और सुखविंदर सिंह सुखों के बीच में हमेशा तलवार है तनी रही यह दोनों ही नेता एक दूसरे को फूटी आंख नहीं भाते थे अब जबकि सरकार में सुखविंदर सिंह सुखों का बड़ा कद है और केंद्रीय नेतृत्व से भी उनके अच्छे रिश्ते हैं तो वह अपनी सारी राजनीतिक गोटिया अपने हिसाब से सेट कर रहे हैं वैसे भी पूर्व में मुख्यमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और केंद्रीय नेतृत्व के बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं माने जाते थे और माना यह गया था की अपनी तक सियासी ताकत को दिखाते हुए वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था और अपने दम पर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद हासिल किया था पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के रहते होली लॉज हमेशा अपनी हिसाब से राजनीति करते थे और प्रदेश हो या राष्ट्रीय स्तर पर हो उनकी खूब पेट थी लेकिन अब उनकी गैर मौजूदगी में होली इलाज पहली बार सियासत में सर के बाल गिरना नजर आ रहा है