आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा मुख्यालय में राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि”ध्यान पहले एक वर्जित साधना मानी जाती थी, आज इसे वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया गया,सभी से अपने जीवन में अपनाने का किया आह्वान
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर, पिछले वर्ष दुनिया भर से 85 लाख से अधिक लोगों ने एक साथ ध्यान कर एक ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसी पृष्ठभूमि में, वैश्विक आध्यात्मिक गुरु और मानवतावादी नेता गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा मुख्यालय से आज के अशांत और बेचैन होते संसार के लिए ध्यान को अपनाने का आह्वान किया।
अपने संबोधन में गुरुदेव ने कहा कि ध्यान केवल व्यक्तिगत कल्याण की साधना नहीं है, बल्कि उन समाजों के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है, जो तनाव, संघर्ष, अनिश्चितता और भावनात्मक पीड़ा से जूझ रहे हैं।
दूसरे विश्व ध्यान दिवस के उत्सवों की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र जिनेवा में ‘विश्व शांति के लिए ध्यान’ विषय पर गुरुदेव के विशेष संबोधन से हुई। यह कार्यक्रम भारत के स्थायी मिशन, जिनेवा द्वारा द आर्ट ऑफ लिविंग के सहयोग से आयोजित किया गया। ऐसे समय में, जब सभी आयु वर्गों और भौगोलिक सीमाओं के पार चिंता, बर्नआउट और अकेलेपन की समस्या बढ़ रही है, गुरुदेव का संदेश इस बात पर केंद्रित था कि स्थायी समाधान केवल बाहरी उपायों से नहीं, बल्कि मानव मन को स्थिर करने से भी संभव है। गुरुदेव ने कहा कि ध्यान अब दुनिया के लिए कोई विलासिता नहीं रह गया है। जब हमारी एक तिहाई आबादी अकेलेपन से और लगभग आधी आबादी मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझ रही है, तब हमें ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता है जो हमें स्वयं से जोड़ सके और भीतर जमा तनाव को मुक्त कर सके। यहीं ध्यान की भूमिका सामने आती है।”
माइंडफुलनेस और ध्यान के अंतर को समझाते हुए उन्होंने कहा, कि “माइंडफुलनेस ड्राइववे है और ध्यान आपका घर। ध्यान आपको भीतर गहराई तक ले जाता है और वह शांति देता है जिसकी आज सख्त आवश्यकता है। यह कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है। ध्यान तो बस मन के कंप्यूटर में जमा अनावश्यक फ़ाइलों को डिलीट करने जैसा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि “हम सभी ऊर्जा हैं,” और श्रोताओं से इस पर विचार करने का आग्रह किया कि यह ऊर्जा क्या सामंजस्य और सौहार्द उत्पन्न कर रही है। “ध्यान हमारे चारों ओर आवश्यक सामंजस्य रचता है और हमारी तरंगों को शुद्ध करता है ।
श्री श्री रविशंकर ने कहा कि पिछले वर्ष 21 दिसंबर को ‘द वर्ल्ड मेडिटेट्स विद गुरुदेव’ पहल के तहत दुनिया भर से 85 लाख से अधिक लोग एक साथ जुड़े। यह अब तक का सबसे बड़ा ध्यान आयोजन बना, जिसमें छह गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी स्थापित हुए। इसकी विशेषता केवल इसका विशाल स्वरूप नहीं थी, बल्कि इसकी विविधता भी थी- लोग अपने घरों, शैक्षणिक परिसरों, कार्यस्थलों, संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों और सामुदायिक स्थलों से इसमें शामिल हुए।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, महामहिम श्री अरिंदम बागची ने कहा,
“गहरे संघर्ष और अविश्वास से भरी दुनिया में, ध्यान केवल आत्म-विकास की व्यक्तिगत साधना नहीं है। यह जटिल वैश्विक परिस्थितियों को समझने, अविश्वास को पाटने और सहानुभूति विकसित करने का एक प्रभावी माध्यम है।”
आधुनिक युग के बड़े हिस्से में, पश्चिमी दुनिया में ध्यान को हाशिए पर रखा गया। 1980 के दशक की शुरुआत में, जब आंतरिक विज्ञान पर चर्चा के लिए मुख्यधारा में बहुत कम स्थान था, तब गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने उस यात्रा की शुरुआत की जिसने धीरे-धीरे दुनिया को भीतर की ओर देखने की दिशा दी। शिक्षा, संघर्ष समाधान, किसान कल्याण, कारागार सुधार, युवा नेतृत्व, कॉर्पोरेट तनाव प्रबंधन और समुदायों के पुनर्निर्माण जैसे क्षेत्रों में ध्यान को केंद्र में रखते हुए, वे 182 से अधिक देशों तक पहुँचे।
अपने संबोधन में गुरुदेव ने उन 192 देशों के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व ध्यान दिवस के प्रस्ताव का समर्थन किया। किसी आंतरिक साधना का इतने व्यापक सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और संस्थागत स्तर पर स्वीकार किया जाना अपने-आप में दुर्लभउपलब्धि है।
इस वैश्विक पहल को आगे बढ़ाते हुए, गुरुदेव 19 दिसंबर को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय से एक प्रमुख संबोधन भी देंगे, जिसमें वे मानसिक दृढ़ता, संवाद और शांति को सुदृढ़ करने में ध्यान की भूमिका पर प्रकाश डालेंगे।
इस वर्ष भी 21 दिसंबर को लाखों लोगों के गुरुदेव के साथ जुड़ने की संभावना है, जब वे न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर स्थित प्रतिष्ठित ओक्यूलस से रात 8:30 बजे (भारतीय समयानुसार) एक संक्षिप्त ध्यान और परिवर्तनकारी सत्र का मार्गदर्शन करेंगे।
एक ऐसी दुनिया में जो शायद ही कभी रुकती है, यह क्षण सामूहिक स्थिरता का होगा – एक साझा साँस, और यह स्मरण कि तेज बदलाव और अनिश्चितता के बीच भी, शांति की कुंजी आज भी मानव मन के भीतर ही निहित है।
