बैंगलोर स्थित आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम के कलाकारों ने शिमला के गेयटी थिएटर में “राम लला की माता ” नाटक की बेहतरीन प्रस्तुति से बांधा समा,माता कैकई और दासी मंथरा ने खुद को कलंकित कर समाज की हिकारत का दंश झेल प्रभु राम के चरित्र को युगों-युगों तक के लिए बना दिया यादगार
आर्ट ऑफ़ लिविंग के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय बैंगलोर की प्रख्यात नाट्य मंडली ने आज शिमला के गेयटी थिएटर में बहुप्रतीक्षित संगीत नाटक, “रामलला की माता” के माध्यम से राजा राम से पुरषोत्तम राम बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाली माता कैकई और दासी मंथरा का ऐसा खूबसूरत चित्रण प्रस्तुत किया जिससे शायद अब तक अधिकतर लोग अनभिज्ञ ही रहे होंगे । नाटक के लेखक व निर्देशक पंकज मणि के निर्देशन में आश्रम की इस नाटक मंडली के सभी कलाकारों ने अपने 48वें मंच प्रदर्शन से सैकड़ों दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया ।अपनी सजीव प्रस्तुति से कलाकारों ने राजनीति और व्यवस्था पर ऐसे व्यंग्य बाण छोड़े जिन्होंने दर्षकों को खूब गुदगुदाया । गेयटी थिएटर जहाँ नाटकों को देखने वालों का अक्सर टोटा रहता है आज पूरी तरह से खचाखच भर हुआ था । मंथरा की भूमिका निभा रही आकांक्षा बाजपेई ने अपने जीवंत अभिनय से दर्शक दीर्घा में बैठे हर दर्शक को अश्रुधारा बहाने को मजबूर कर दिया उनका साथ कैकई की भूमिका निभा रही अनाघा कारवीर ने बहुत संजीदगी व खूबसूरती से निभाया । भरत की भूमिका निभा रहे अभिषेक शर्मा ने भी खूब तालियां बटोरी। नाटक के सूत्रधार संतोष शर्मा ने दर्शकों को जहां नाटक के साथ बांधे रखा वहीं अफसरशाही और व्यवस्था पर तीखे कटाक्ष भी बहुत सटीकता के साथ किए जिनका जवाब दर्शकदीर्घा से तालियों की गड़गड़ाहट की एवज में बतौर प्रतिउत्तर समय समय पर मिलता रहा । नाटक में ऑन स्टेज के साथ-साथ बैक स्टेज की भी श्रम भूमिका रहती है । इस नाटक की रूप सज्ज़ा, प्रकाश परिकल्पना और संगीत लाज़वाब था ।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी के ज्ञानवर्धक प्रवचन से प्रेरणा लेते हुए, इस प्रस्तुति में ऐसे प्रश्नों पर गहनता से चर्चा की गई:
क्या होगा अगर कैकेयी के इरादों को गलत समझा गया?
क्या होगा अगर मंथरा की कहानी में छिपे हुए सत्य हैं?
क्या होगा अगर हमें बताई गई कहानी अधूरी है?
परिणामस्वरूप कालातीत महाकाव्य के लिए एक नया दृष्टिकोण है, जिसमें भगवान राम की माताओं कौशल्या और कैकेयी की कम ज्ञात यात्राओं की खोज की गई है। नाटक इन प्रतिष्ठित महिलाओं के इर्द-गिर्द लंबे समय से चली आ रही कहानियों पर सवाल उठाने का साहस करता है, उनकी भूमिकाओं और कार्यों पर नई रोशनी डालता है।
यह नाटक ऐतिहासिक नाटक, राजनीतिक व्यंग्य, सामयिक हास्य, आकर्षक कहानी और मूल लाइव संगीत रचनाओं का एक गतिशील मिश्रण है। निर्देशक पंकज मणि के मुताबिक यह नाटक रामायण की पारंपरिक व्याख्याओं को चुनौती देता है, जिससे दर्शकों को इसके पात्रों को जटिल, मानवीय और गहराई से संबंधित रूप में अनुभव करने का मौका मिलता है।” “यह आनंद, गहराई और प्रतिबिंब से भरी एक परिवर्तनकारी नाट्य यात्रा है।” आर्ट ऑफ़ लिविंग ने आंतरिक विकास और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को बढ़ावा देने के लिए कला को एक माध्यम के रूप में अपनाया है, जो रामलला की माता जैसी प्रस्तुतियों को प्रेरित करता है।
आश्रम मंडली परिचय
संगीत मंडली
- अभिषेक पांडे- मुख्य गायक
- नृपेन दास – बांसुरी, ताल और गायन
- नरेश ठाकुर- कीबोर्ड और वोकल मंडली
- डॉ. गीत – मंडली कलाकार
- कुमार मंगलम अग्रवाल – मंडली कलाकार
- सिद्धि पटेल – मंडली कलाकार
- मिक्की सिंह – मंडली कलाकार
8.सौरभ पांडे- मंडली कलाकार - शानू बालाकृष्णन – मंडली कलाकार
- सृष्टि श्रीवास्तव – सरस्वती के रूप में
- वीरेश शर्मा – कैकैयिराई, राजा दशरथ और जनक के रूप में
- अभिषेक शर्मा – भरत के रूप में
- विकास विनीत – सूत्रधार नंबर 1
- संतोष शर्मा – सूत्रधार क्रमांक 2
- आस्था श्रीवास्तव – कौशल्या के रूप में
- आकांशा बाजपेयी- मंथरा के रूप में
- अनघा करवीर – कैकयी के रूप में उत्पादन, प्रकाश एवं ध्वनि टीम
- अथर्व श्रीवास्तव लिखित और निर्देशित – पंकज मणि
इस मौके पर शिमला नगर निगम के महापौर सुरेंद्र चौहान ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की उनके साथ उप महापौर उमा कौशल भी मौजूद रहीं । कार्यक्रम में लेफ्टिनेंट जनरल धीरेंद्र कुशवाह बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर शरीक हुए । सभी विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर नाटक का शुभारंभ किया । महापौर सुरेंद्र चौहान ने नाटक के लेखक व निर्देशक पंकज मणि और सभी कलाकारों को इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई दी और समाज में हमारी प्राचीन संस्कृति असल तस्वीर प्रस्तुत करने और सच्चाई से रुबरु करने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग के प्रयासों की सराहना की ।