कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर ने राज्य सरकार पर कर्मचारियों, पैंशनरों, आउटसोर्स कर्मचारियों और किसान-बागवानों की समस्याओं को हल करने में विफल रहने के लगाए आरोप
हिमाचल प्रदेश की जय राम सरकार चुनावी वर्ष में आए दिन कोरी घोषणाओं की सौगातें दे कर जनता को गुमराह कर रही है। आजकल हिमाचल के मुख्यमंत्री हर विधान सभा क्षेत्र में जाकर बिना बजट प्रावधान के करोड़ों रुपयों के शिालान्यास करने में ब्यस्त हैं जबकि जमीनी हकीकत पूरी तरह सरकार की इन घोषणाओं के विपरीत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व प्रदेश कांग्रेस व प्रदेश कार्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर ने आज कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन शिमला में पत्रकार वार्ता में कहा कि बागवानों के हितों की रक्षा करने में भाजपा सरकार हमेशा असंवेदनशील रही है। उन्होने कहा कि सेब बाहुल क्षेत्रों के लोगों के साथ भाजपा सरकार हमेशा से बहुत बड़ा भेदभाव करती रही है जिस कारण भाजपा के शसनकाल में बागवान हमेशा बहुत परेशान रहे है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने सेब की पेकेजिंग सामाग्री के दामों में बढ़ोतरी करके बागवानों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। उन्होंने कहा कि बीते साल सौ ट्रे का जो बंडल 450 रु0 से 500 रुपये में मिल रहा था इस बार वही 700 से 800 रुपये प्रति बंडल मिल रहा है जिसमें इसकी किमतों में 250 रुपयें के लगभग प्रति बंडल की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह बीते साल जो पेटी 45 से 65 रुपयें प्रति पेटी मिल रही थी इस बार इसके 60 से 80 रुपये देने पड़ रहे है। उन्होंने कहा कि केन्द सरकार द्वारा कार्टन व पेकिंग सामाग्री पर जी एस टी की दर 12 से 18 प्रतिशत करके भाजपा सरकार ने बागवानों के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। राज्य सरकार के बागवान विरोधी इस रवैये का कांग्रेस पार्टी कढ़ा विरोध करती है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने जो बढ़े हुए 6 प्रतिशत जी एस टी कम करने की बात कही है उस पर सरकार स्थिति स्पष्ट करे कि कब तक बढ़े हुए जी एस टी को कम किया जाएगा।
कौल सिंह ठाकुर ने कहा कि भाजपा सरकार के पांच वर्ष पूरे होने जा रहे है परन्तु कर्मचारियों] पैंशनरों] आउटसोर्स कर्मचारियों] किसान-बागवान समेत किसी भी वर्ग की समस्याओं को हल करने में आज तक राज्य सरकार पूर्णताः विफल साबित हुई है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की घोषणाएं जनसभाओं तक सीमित हो कर रह गई हैं जिन्हें अधिकारी गमभीरता नहीं लेते। उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य की अफसरशाही मुख्यमंत्री व उनके मंत्रीमंडल के सदस्यों को कोई तवज्जो नहीं दे रही है जिस कारण ये सारी घोषणाएं मुख्यमंत्री कार्यालय में ही दफन हो जाती हैं।