प्रदेश के जाने माने निर्देशक दयाल प्रसाद के निर्देशन में नाटक “युद्ध और बुद्ध” ने बांधा खूब समा, मन्त्र मुग्ध होकर दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा एतिहासिक गेयटी थिएटर
दयाल प्रसाद के निर्देशन में गेयटी के थीएट्रिकल कैनवास में नाटक “युद्ध और बुद्ध”को उतारा गया । प्रेक्षागृह का पर्दा उठा – युद्ध के तनाव में बुने गए इस नाटक का पर्दा कब गिरा पता ही न चला । दर्शकदीर्घा से लगातार तालियों के साथ दर्शकों ने स्टैंडिंग ओवेशन देकर नाटक का दिल खोल कर स्वागत किया।
नाटक का आरंभ एलओसी पर भारत पाक सेना के जमावड़े से होता है। सेना की गश्त के दौरान पाक आर्मी युद्ध के उन्माद में भारतीय फौजी अफसर की निर्ममता से मार देती है । सेना की टुकड़ी जवाबी हमला करना चाहती है । ऊपर से आर्डर न मिलने से फौजी हताश व निराश है ।
दूसरे भाग में कश्मीर में बेगुनाह मुस्लिम परिवार के उत्पीड़न की कहानी है जिसका एक बेटा जेहादी हो जाता है । बेटे की तफ्तीश के लिए सेना घर पर दबिश देती है उसके बाद पुलिस घर पर कहर बन कर टूटती है। उनका शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न करती है । अंततः मा की सूचना पर आतंकी बेटे को सेना मार गिराती है ।
यह तनाव का नाटक है । मंच व दर्शक के बीच तनाव की डोरी इस कदर बंधी रही कि दर्शक अंत तक हिल नहीं पाया। नाटक की विषय वस्तु है -युद्ध और बुद्ध यानी युद्ध और शांति को लेकर है । शांति का रास्ता क्या युद्ध से निकलता है, यह विमर्श अंत तक चलता है। हेडक्वार्टर से हमले के आर्डर न मिलने की खीज निकालते हुए सीओ अपनी यूनिट से कहते है – युद्ध और बुध एक साथ नही चल सकते ।
युद्ध अपने साथ विध्वंस लाता है । निर्दोष मासूम, और महिलाएं इसका शिकार होती है । मानवीय मूल्यों को बंदूक व पैरों तले निर्ममता से कुचला जाता है । सीमा पर सिपाही बाहरी व भीतरी दोनों मोरचो पर लड़ रहा होता है ।”युद्ध और बुध ” की कहानी में जबरदस्त मोड़ तब आता है जब अपने साथी फौजी के लिए कुछ न कर पाने की खीज मिटाने के लिए कप्तान मेजर डोगरा (नरेश मींचा) 2 पाक सैनिकों को मार कर खुद को कोर्टमार्शल के लिए प्रस्तुत करते है।
कैप्टन राणावत के पात्र में आर्यन ने अपने अंतर्द्वंदों को खूबसूरती से उजागर कर एक कुशल अभिनेता का परिचय दिया । इस मुख्य पात्र की प्रतिछाया( धीरेंद्र रावत) का थीएट्रिकल प्रयोग बहुत अच्छा रहा। रोहित कंवल शैंकी के ध्वनि व संगीत संयोजन व धीरज रघुवंशी और अशोक के प्रकाश संचालन से नाटक के दृश्य बंधों को उम्दा थीएट्रिकल स्पेस मिला। मंच पर डायलॉग डिलीवरी में ड्रैमेटिक पाज़ , पात्रों की मूवमेंट व भावभंगिमाओं को लयबद्ध कर निर्देशक दयाल प्रसाद नेखुद को साबित कर दिखया। अभिनेताओं ने नाटक की लय को अंत तक पकड़े रखा।
दृष्यों में तनाव से मुक्त करने के लिए फौजी सरदार मंजीत व उसके भंगड़े ने खूब रंग जमाया। प्रमोशन पार्टी में फौजियों के द्वारा बोतलों पर चमच की टनकार ने इस सीन को उत्कृष्ट बनाया । मुस्लिम परिवार के उत्पीड़न के दृश्यों में निर्देशन व अभिनय का तालमेल चरम पर था । हालाँकि उत्पीड़न के दृश्य छोटे हो सकते थे।
यह नाटक मधु कांकरिया की कहानी पर आधारित था । कथा को नाटक में ढ़ालने का जिम्मा निर्देशक डायलप्रसाद ने स्वयम लिया । कहानी की इंप्रोवाइजेशन से पात्रों के अभिनय में मौलिकता नजर आई जिससे यह प्रस्तुति मैकेनिकल ना होकर सहज हो गई । रेपर्टरी के अभिनेता युद्ध और बुद्ध नाटक में अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलते दिखे। कैप्टन राणावत की मुख्य भूमिका निभा रहे आर्यन ने अपने पात्र के साथ पूर्ण न्याय किया। इनके अभिनय में इनकी रेंज नजर आयी । मंच पर बॉडी, वॉइस, मूवमेंट और भाव की ऐसी रिदम एक्टर में एक साथ बिरले दिखाई देती है । हर प्रकार की भूमिका में दिखने वाले रेपर्टरी के अभिनेता धीरेंद्र रावत को मंच पर देखना एक सुखद अनुभव रहा। लेकिन प्रतिछाया के रूप में स्कोप कम लगा । अभय ठाकुर ने छोटे लड़के की छोटी भूमिका को अपने अभिनय से बड़ा बना दिया और साबित किया कि हम भी मैदान में है । पुलिस इंस्पेक्टर जलीलखांन सोहन कपूर ने अपनी मेहनत व प्रतिभा का लोहा मनवाया । वे एक सोच रख कर अभिनय करते हैं । हां कहीं कहीं पात्र फिल्मी रंग में रंगा दिखा । सीओ नीरज पाराशर अपनी भूमिका से न्याय करते दिखे । कमांडिंग ऑफिसर का रोब दाब , चाल ढाल और मैनरिज्म को उन्होंने बारीकी से पकड़ा । आवाज का दम दिखा जो पात्र के अनुकूल था । नरेश मिंचा का इंवॉल्वमेंट देखने लायक था ।
दयाल प्रसाद के निर्देशन में इन सभी अभिनेताओं के स्पीच ,एक्टिंग ,रिएक्शन के पैटर्न टूटे हैं जो इस प्रस्तुति की सबसे बड़ी उपलब्धि है । महिला पात्रों में सोनू मां के पात्र को दिशा देने में कामयाब रही । बेटे को सेना द्वारा मार गिराए जाने के आखिरी दृश्य में सोनू का अभिनय बेजोड़ रहा । कुल मिला कर नाट्य विधा के सभी अंगों के समावेश से यह प्रस्तुति उत्कृष्ट श्रेणी में रखी जा सकती है ।