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विलुप्तता की कगार पर पहुंच चुके प्रदेष के चामूर्थी घोड़ों की नस्ल बचाने में सफल रही राज्य सरकार।

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राज्य सरकार ने कड़े प्रयासों और विपरीत परिस्थितियों पर विजय हासिल करने के बाद विलुप्तता की कगार पर पहुंच चुके चामुर्थी घोड़े की नस्ल के संरक्षण और पुनःस्थापन में बड़ी सफलता हासिल की है । चामूर्थी घोड़ों की नस्ल पर कुछ साल पहले विलुप्त होने का खतरा मंडराया था।
बेहतर क्षमता और बल-कौशल के लिए विख्यात चामुर्थी नस्ल के घोड़े हिमाचल के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों, मुख्य रूप से बर्फीली स्पीति घाटी में सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता के समय से पाए जाते हैं। यह नस्ल भारतीय घोड़ों की 6 प्रमुख नस्लों में से एक है, जो ताकत और अधिक ऊंचाई वाले बर्फ से आच्छांदित क्षेत्रों में अपने पांव जमाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। इन घोड़ों का उपयोग तिब्बत, लद्दाख और स्पीति के लोगों द्वारा युद्ध और सामान ढोने के लिए किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त, हिमाचल के कुल्लू, लाहौल-स्पीति और किन्नौर तथा पड़ोसी राज्यों में विभिन्न घरेलू और व्यावसायिक कार्यों के लिए व्यापक रूप से इनका उपयोग किया जाता रहा है।
पशुपालन विभाग ने इन बर्फानी घोड़ों को बचाने और संरक्षित करने तथा पुनः अस्तित्व में लाने के उद्देश्य से वर्ष 2002 में लारी (स्पीति) में एक घोड़ा प्रजनन केंद्र स्थापित किया। यह केंद्र स्पीति नदी से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थापित किया गया है, जो राजसी गौरव और किसानों में समान रूप से लोकप्रिय घोड़ों की इस प्रतिभावान नस्ल के प्रजनन के लिए उपयोग किया जा रहा है।
वर्तमान में इस प्रजनन केंद्र को तीन अलग-अलग इकाइयों में विभाजित किया गया है, जिसमें प्रत्येक इकाई में 20 घोड़ों को रखने की क्षमता और चार घोड़ों की क्षमता वाला एक स्टैलियन शेड है। इस कंेद्र को 82 बीघा और 12 बिस्वा भूमि पर चलाया जा रहा है। विभाग द्वारा इस लुप्तप्राय प्रजाति के लिए स्थानीय गांव की भूमि का उपयोग चरागाह के रूप में भी किया जा रहा है।
पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर के मुताबिक, इस प्रजनन केंद्र की स्थापना और कई वर्षाें तक चलाए गए प्रजनन कार्यक्रमों के उपरांत इस शक्तिशाली विरासतीय नस्ल, जो कभी विलुप्त होने की कगार पर थी, की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में इनकी आबादी लगभग चार हजार हो गई है।
लारी फार्म में इस प्रजाति के संरक्षण के प्रयासों के लिए आवश्यक दवाओं, मशीनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं के अलावा पशुपालन विभाग के लगभग 25 पशु चिकित्सक और सहायक कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस केंद्र में इस नस्ल के लगभग 67 घोड़ों को पाला जा रहा है, जिनमें 23 स्टैलियन और 44 ब्रूडमेयर्स दोनों युवा और वयस्क शामिल हैं। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाले अधिकांश घोड़ों को पशुपालन विभाग द्वारा नीलामी के माध्यम से स्थानीय खरीदारों को बेचा जाता है।
चार-पांच वर्ष की आयु के एक व्यसक घोड़े का औसत बाजार मूल्य वर्तमान में 30-40 हजार रुपये है। इन घोड़ों की सबसे अधिक लागत तीन वर्ष पूर्व 75 हजार रुपये दर्ज की गई थी।

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