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जन स्वास्थ्य अभियान की प्रदेश इकाई ने राज्य के सबसे बड़े आई जी एम सी अस्पताल में अव्यवस्था और कुप्रबंधन पर सरकार पर बोला तीखा हमला, बयां किया आम जनमानस का दर्द

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प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल IGMC में बीते कुछ वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में इतनी गिरावट आई है कि लोग इस अस्पताल में जाने से भी कतराते हैं । केंद्र सरकार ने भले ही निशुल्क इलाज की सुविधा प्रदान की है लेकिन आईजीएमसी अस्पताल में अव्यवस्था का यह आलम है कि यहां बीते कुछ दिनों से तो टेस्ट भी नहीं करवाए जा रहे हैं । पूर्व की कांग्रेस सरकार ने टेस्ट करवाने का जिम्मा निजी प्रयोगशाला SRL को दिया था। कई वर्षों तक यह प्रयोगशाला लोगों के टेस्ट करती भी रहे लेकिन वर्तमान सरकार ने एसआरएल से ठेका हटाकर अब पुणे की कृष्णा डायग्नोसिस कंपनी को यह ठेका दिया है ।प्रयोगशाला क्या बदली यहां काम करने वालों की भी छुट्टी हो गई और वे अब दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है उन्हें देश के विभिन्न राज्यों में ट्रांसफर कर दिया गया है जिससे उनकी स्थिति अब ना घर की रही ना घाट की । वहीं दूसरी ओर आईजीएमसी अस्पताल में प्रदेश के कोने-कोने से आने वाले मरीजों को तो और भी अधिक दिक्कतें हो गई है । यहां नई कंपनी ने कार्यभार नहीं संभाला है और लोगों को मजबूरन हर टेस्ट के लिए निजी प्रयोगशाला का रुख करना पड़ रहा है और उसके लिए उन्हें मोटी कीमत अदा करनी पड़ रही है । इस मामले को गंभीरता से उजागर करते हुए जन स्वास्थ्य अभियान की राज्य इकाई के प्रदेश संयोजक सत्यवान पुंडीर ने कहा कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में पिछले बीस दिनों से असमंजस की स्थिति बनी हुई है जिसमें हजारों मरीजों को परेशानी उठानी पड़ रही है। कभी लम्बी लाईने लगाकर तो कभी मशीनरी खराब होने से निजी कम्पनीयों की तो खूब चांदी हो रही है लेकिन दूरदराज के क्षेत्रों से आये मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की दोषपूर्ण भर्ती नीति के तहत यह सब हो रहा है। जबकि सरकार को इन टेस्टों का ठेका किसी निजी कम्पनी को देने की आवश्यकता ही नहीं है यदि उपयुक्त मात्रा में लेब टेक्नीशियनों की भर्ती की जाय। प्रदेश से बीएससी पास करके छात्र एम्ज तथा पीजीआई में तो सेवायें दे रहे हैं परन्तु अपने प्रदेश की सरकार इनकी सेवाएं लेने को तैयार नहीं। वर्तमान में 56 टेस्ट बिना किसी शुल्क के करने जिन्हें 200 से अधिक करने का प्रस्ताव है, ऐसे में लोगों में टेस्ट करवाने की जागरूकता भी बढ़ी है। क्योंकि जो लोग अधिक खर्च के कारण मंहगे टेस्ट करवाने की क्षमता नहीं रखते थे उन्हें राहत तो मिली है। लेकिन टेस्ट की प्रक्रिया को निजी कम्पनी को देने पर स्वतः ही शंका पैदा हो जाती है कि कहीं इसमे भी कमीशनखोरी तो नहीं शामिल है? अन्यथा IGMC में केवल 30 का टेक्निकल स्टाफ देने मात्र से 24 घण्टे टेस्ट की सुविधा आसानी से मिल सकती है। जबकि पूरा ढांचा व मशीनरी उपलब्ध होने के बाबजूद भी इसे ठेके पर दिया जा रहा है।

प्रदेश में 105 प्रयोगशालाओं में टेस्ट की प्रक्रिया को पिछली सरकार ने SRL कम्पनी को सौंपी थी, जबकि वर्तमान सरकार ने पुणे की किसी कृष्णा डायग्नोस्टिक कम्पनी को प्रदेश के 113 प्रयोगशालाओं का ठेका दे दिया है। लेकिन तीन सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी टेस्ट की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, जबकि दो दिन के अंदर शुरू करने का कृष्णा कम्पनी ने आश्वासन दिया था। ऐसे में स्वास्थ्य जैसी बुनियादी व मूलभूत समस्याओं के प्रति सरकार की जिम्मेदारी, जवाबदेही व कार्यप्रणाली पर सवाल तो निश्चित तौर पर उठता है।

जन स्वास्थ्य अभियान सरकार से जल्द हस्तक्षेप की अपील व मांग करता है ताकि प्रतिदिन हजारों मरीजों को आ रही परेशानी से बचाया जा सके। साथ ही कृष्णा कम्पनी को ठेका देने के अपने फैसले की समीक्षा करने व स्वास्थ्य विभाग में लैब टेक्नीशियनों के नए पद क्रियेट करके भर्ती करने का सुझाव देता है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल IGMC की यदि बात करें तो 1980 के दशक में यहां लैब टेक्नीशियनों के 60 पदों की भर्ती की थी और उस समय यहां मात्र 125 बिस्तर होते थे, जबकि आज 1000 से अधिक बिस्तरों वाले इस अस्पताल में वही पद हैं। नया कोई पद पैदा नहीं किया गया है। यदि हिमाचल को देश मे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं में गिना जाता है तो हमारी सरकारों की स्वास्थ्य के प्रति प्राथमिकता का अंदाजा लगा सकते हैं।

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