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शूलिनी विश्व विद्यालय का एक और शोध -चीड़ की पत्तियों और छाल से संभव होगा महिलाओं में पोस्टमेनोपजल ओस्टियोपोरोसिस का इलाज

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हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित शूलिनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ फ़ार्मास्युटिकल साइंसेज की एक टीम ने महिलाओं में पोस्ट-मेनोपॉज़ल ऑस्टियोपोरोसिस के लिए देवदार के पेड़ों की छाल से बना एक मौखिक सुत्रीकरण   विकसित किया है।

डॉ. रोहित गोयल, डॉ.अदिति शर्मा और सहकर्मियों की अगुवाई वाली एक टीम द्वारा किए गए शोध में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक परियोजना के तहत ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार के लिए तीन हिमालयन पाइन प्रजातियों का मूल्यांकन किया गया।
शोधकर्ताओं का समूह महिलाओं में  हड्डीयों से  जुड़े  रोग  पर काम कर रहा था, विशेष रूप से पोस्ट-मेनोपॉज़  के बाद की अवधि के दौरान, और हिमालय से चीङ के पेड़  की विभिन्न प्रजातियों की छाल कैसे हर्बल गोलियों के साथ इलाज कर सकती है। वे अब प्रासंगिक प्रोटीन की भूमिका का अध्ययन करने के बाद एक मौखिक सूत्रीकरण विकसित करने में सक्षम हैं। उनका अध्ययन हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है ।


डॉ.गोयल ने  चीड़ के पेड़ों की छाल का उपयोग करने के  विचार के बारे में बताया कि उन्होंने ऊपरी शिमला क्षेत्र के कुछ भागों में लोगों को  कमजोर हड्डियों के लिए पारंपरिक उपचार के रूप में चीड़ की छाल का उपयोग करते देखा। ग्रामीण  चीङ के पेड़  की छाल से बने पाउडर का उपयोग मौखिक उपचार के साथ-साथ एक प्रकार के प्लास्टर के रूप में भी उपयोग करते हैं ।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि एक हर्बल उपचार का निर्माण ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार में एक लंबा रास्ता तय करेगा और बताया कि वर्तमान में ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार के लिए बहुत सीमित दवा उपलब्ध है । उन्होंने कहा कि टीम अब अन्य संस्थानों और अस्पतालों के साथ मिलकर क्लिनिकल ट्रायल  करेगी।
खोज के लिए शोधकर्ताओं को बधाई देते हुए, कुलपति प्रोफेसर पी के खोसला ने कहा कि ऑस्टियोपोरोसिस एक विश्व व्यापी समस्या है और विशेष रूप से महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है जैसे-जैसे वे वृध होती है।  उन्होंने कहा कि बिना किसी साइड इफेक्ट के साथ  यह  शोध एक प्रभावी उपचार होगा।

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