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राजधानी शिमला में पेयजल आपूर्ति करने वाली कम्पनी एसजेपीएनएल और पूर्व सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी मंच ने उठाए सवाल,भ्र्ष्टाचार के आरोप लगाकर भंग करने की उठाई मांग

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प्रदेश की राजधानी शिमला के लिए सतलुज से पानी पहुंचाने का ठेका आबंटन सवालों के घेरे में आ गया है। भ्रष्टाचार विरोधी मंच ने ठेके की लागत 250 से 500 करोड़ करने पर सवाल उठाते हुए पूर्व सरकार को आड़े हाथ लिया है । मंच के अध्यक्ष एवं शिमला के पूर्व उप महापौर टिकेंद्र सिंह पंवर ने शिमला में एक पत्रकार वार्ता में सरकार से शिमला जल प्रबंधन निगम को भंग कर पानी की वितरण का काम नगर निगम के सुपुर्द करने की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि व्यक्ति विशेष को फायदा पहुंचाने के मकसद से इस ठेके की लागत बढ़ाई गई। उन्होंने ठेका आबंटन के टेंडर की शर्तों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसा न करने की स्थिति में मंच अदालत का दरवाजा खटखटाएगा।
टिकेंद्र पंवर ने आज शिमला में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि साल 2015 में शिमला में पीलिया का प्रकोप हुआ। इसके बाद उस दौरान एमसी ने राज्य सरकार और विश्व बैंक के साथ कई बैक टू बैक बैठकों के बाद एक त्रिपक्षीय समझौता किया गया। तीन प्रमुख कार्यों सतलुज नदी से पानी उठाना, जल वितरण में सुधार और अपशिष्ट जल उपचार पर उतरने पर 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता पर सहमति बनी। इसमें सरकार की भी हिस्सेदारी थी। वर्ष 2017 में शिमला नगर निगम और राज्य सरकार में भाजपा आई थी। उन्होंने इसे एक कंपनी में बदलने का फैसला किया और सभी संपत्तियों को नवगठित एसजेपीएनएल में स्थानांतरित कर दिया। कंपनी शिमला नगर निगम के 51 शेयर और राज्य सरकार के 49 शेयर के साथ पंजीकृत थी।
उन्होंने पूछा कि तत्कालीन सरकार द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए ठेका कैसे दिया गया। वहीं इन परियोजना की लागत को 250 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया गया है। जबकि इस परियोजना ने अपने लक्ष्य को बिल्कुल पूरा नहीं किया है। इस परियोजना को एक निजी कंपनी द्वारा अस्थिरता से निपटाया जा रहा है। भ्रष्टाचार विरोधी मंच ने राज्य सरकार से मांग की है कि पिछली सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड को रद्द करें। यूटिलिटी का नाम बदले जैसा कि वर्ष 2016-17 में ग्रेटर शिमला जल आपूर्ति और सीवेज सर्कल में किया गया था। संपूर्ण उपयोगिता को शिमला नगर निगम को हस्तांतरित करें ।
उन्होंने कहा कि ठेके में गड़बड़ी की जांच के लिए सरकार को एसआईटी का गठन करना चाहिए। एसआईटी से इस मामले की जांच करवा दोषी फिर चाहे राजनेता हो अथवा नौकरशाह, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शहर में पानी बांटने का काम कंपनी का नहीं होना चाहिए। यह काम नगर निगम शिमला का होना चाहिए।

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