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सोलन के प्रख्यात शूलिनी माता मेले में जाली चंदा पर्ची मामले की जांच पर भाजपा ने उठाए सवाल, जांच को प्रभावित करने और असल आरोपियों के भी जड़े आरोप

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भाजपा मीडिया प्रभारी कर्ण नंदा ने फ़र्जीवाड़ा एवं भ्रष्टाचार के मामले पर सरकार को घेरते हुए कांग्रेस सरकार से पूछा कि शूलिनी मेला पर्ची मामले पर अभी तक सरकार चुप क्यों है ? अभी तक इस मामले में बड़े स्तर की जांच क्यों नहीं बिठाई गई ? क्या सरकार कुछ भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने का काम कर रही है ?
उन्होंने कहा कि शूलिनी मेले के नाम पर फर्जी चंदा पर्चियां छपवाने के मामले में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। जांच में सामने आया है कि गिरफ्तार किया गया युवक एक डिपो होल्डर का भाई है और इसी ने शहर की एक प्रिंटिंग प्रेस को 1200 से अधिक पर्चियां छापने का आदेश दिया था। सवाल यह उठता है कि मात्र एक गिरफ्तारी से क्या इस मामले को दबाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है ? प्रारंभिक पूछताछ के बाद आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया गया है, लेकिन यह मामला अब प्रशासनिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और सरकारी प्रतिष्ठान के नाम के दुरुपयोग पर गहराते सवाल छोड़ गया है। पुलिस की जांच के घेरे में सिविल सप्लाई विभाग का संबंधित अधिकारी और प्रिंटिंग प्रेस संचालक भी है । पर अभी तक इस मामले में पुलिस प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की है, पुलिस प्रशासन को इस जांच में और कड़ा रुख अपनाना चाहिए तभी सच्चाई सामने आएगी, नहीं तो ऐसा लगता है कि किसी दबाव के कारण इस पूरे मामले को दबाने का कार्य किया जा रहा है।


बताया जा रहा है की सूत्रों के मुताबिक शूलिनी मेला के लिए स्थानीय अधिकारी की ओर से डिपो होल्डर के भाई को एक चंदा पर्ची दी गई थी, ताकि वह क्षेत्र में जनसहयोग के लिए चंदा इकट्ठा कर सके। लेकिन वह पर्ची उस व्यक्ति से कहीं गुम हो गई। इसी डर में कि कहीं विभागीय कार्रवाई न हो जाए, उसके भाई ने उसी पर्ची की हूबहू नकल तैयार करवाई और एक स्थानीय प्रिंटिंग प्रेस में सैकड़ों नकली पर्चियां छपवा दीं। नालागढ़ शहर की एक प्रिंटिंग प्रेस में छापे के दौरान 1294 पर्चियां बरामद हुई । पर्चियों में ‘शूलिनी मेला कमेटी सोलन’ के नाम के साथ डीसी सोलन का मोबाइल नंबर, ई-मेल आईडी और स्कैनर कोड तक छपा था। जांच के दौरान जब एक पर्ची (क्रमांक 7201) को स्कैन किया गया, तो उसमें डीसी कम चेयरमैन के खाते की डिटेल सामने आ गई, जिससे इस फर्जीवाड़े की गंभीरता और बढ़ गई। यही नहीं, पर्ची पर प्रिंटिंग प्रेस का नाम भी दर्ज नहीं था ।


पूरे मामले में भ्रष्टाचार स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है तब भी प्रशासन इस पूरे मामले पर चादर ढकने का प्रयास कर रहा है, प्रशासनिक अधिकारी तो यह कह रहे हैं की पर्ची डर के मारे छपाई गई, अगर इस वाक्य से मामला दब सकता है तो निश्चित रूप से मामले के ऊपर बड़ा दबाव है, नहीं तो भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही होता है और बड़ी कार्रवाई तो बनती है।

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