भाजपा का आरोप-बेल पर चल रहे राहुल गांधी खुद को समझते हैं संवैधानिक संस्थाओं, देश और कानून से ऊपर, जनता को गुमराह करने में बताया मस्त
1 min readभाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप, प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना और सह प्रभारी संजय टंडन ने कहा है कि अपनी आदत के मुताबिक राहुल गाँधी ने आज भी प्रेस के माध्यम से गलत बयान बाजी कर देश को भटकाने की कोशिश की है । वह अपने आप को देश से बड़ा समझते हैं। अपने को संवैधानिक संस्थाओं से बड़ा समझते हैं, न्यायालय से और संसद से भी बड़ा समझते हैं।
राहुल गाँधी को सजा हुई है 2019 में दिए गए उनके भाषण पर, आज राहुल गांधी ने कहा कि मैं सोच समझ कर बोलता हूं, तो राहुल गांधी 2019 में जो बोले थे, वह सोच समझ कर बोले थे, 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने कर्नाटक में कहा था कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है? आखिर राहुल गाँधी के इस वक्तव्य का तात्पर्य क्या था?
‘मोदी’ सरनेम जाति सूचक शब्द है, जो देश के अति पिछड़े समाज से आते हैं। इस प्रकार, राहुल गाँधी ने अति पिछड़े समाज का अपमान किया था, उन्हें आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन गाली देने का नहीं। राहुल गांधी ने ‘मोदी’ सरनेम पर अपशब्द कहा, तो क्या उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ?
यदि राहुल गाँधी सोचते हैं कि किसी को भी गाली देने और अपमानित करने का उन्हें अधिकार है, तो उनकी गाली से पीड़ित व्यक्ति को भी मानहानि का मुकदमा दर्ज करने का अधिकार है। भारतीय दंड संहिता के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि किसी संगठन या किसी व्यक्ति विशेष को गाली देता या अपमानजनक शब्द कहता है, तो पीड़ित व्यक्ति या संस्था द्वारा उसके खिलाफ मानहानी का मुकदमा दायर करने का अधिकार होता है। क्या कांग्रेस पार्टी को इस कानून से भी परेशानी है?
कोर्ट में राहुल गाँधी को भी उनके वकील के माध्यम से बात रखने का भरपूर मौका मिला, कोर्ट ने राहुल गाँधी से पूछा आप माफ़ी मांगेंगे, उन्होंने स्पष्ट कहा माफ़ी नहीं मांगेंगे, तब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। वैसे भी, मानहानि मामले में राहुल गाँधी पर 7 और मुकदमे देश के विभिन्न भागों में चल रहे हैं। भाजपा नेता श्री सुशील कुमार मोदी ने भी सरनेम मामले को लेकर पटना में राहुल गांधी के खिलाफ एक केस दर्ज कर रखा है। उस मामले में भी राहुल गांधी बेल पर हैं।
राहुल गाँधी यदि सोच समझकर बोलते हैं, तो इस आधार पर भारतीय जनता पार्टी मानती है कि उन्होंने जान बूझकर पिछड़ों का अपमान किया जिसकी हम कड़ी भर्त्सना करते हैं। राहुल गाँधी द्वारा पिछड़ों के अपमान के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी पूरे देश भर में आंदोलन करेगी।
कांग्रेस पार्टी में बड़े बड़े वकीलों की फ़ौज है। वे सूरत सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाकर राहुल जी के लिए स्टे आर्डर के लिए आग्रह क्यों नहीं किये? राहुल जी को कोर्ट जाने से किसने मना किया था? भाजपा इस सवाल का जवाब जानना चाहती है.
क्या राहुल गाँधी नाख़ून कटा कर शहीद होने की कोशिश कर रहे हैं? भारतीय जनता पार्टी का स्पष्ट आरोप है कि जान बूझकर स्टे आर्डर नहीं लिया गया ताकी कर्नाटक विधान सभा चुनाव में राहुल गाँधी प्रकरण को भुनाया जा सके, ऐसा संकेत राहुल गाँधी की बहन और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी दिया है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा जी की गिरफ्तारी मामले में चंद घंटों में ही कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया और कोर्ट से उन्हें राहत भी मिली।
राहुल गाँधी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था कि राहुल गाँधी को एक बलिदानी बताओ और कर्नाटक चुनाव में इसका लाभ लो।
या फिर दूसरी बात क्या ये भी है कि कांग्रेस कि कांग्रेस पार्टी की अंदरुनी राजनीति के तहत यह कवायद हो कि राहुल गाँधी को हटाओ, कांग्रेस बचाओ? इस सवाल का जवाब तो कांग्रेस पार्टी को देना पड़ेगा।
संसद सदस्यता जाने के मामले में राहुल गाँधी अकेले नहीं है, बल्कि अब तक 32 सांसदों की सदस्यता गयी है, जिसमें भाजपा के 6 नेता हैं और देश के अन्य पार्टियों के भी नेता शामिल हैं।
जहां तक राहुल गांधी की सदस्यता जाने की बात है, जनप्रतिनिधि कानून पर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने लिलि थॉमस केस में बहुत स्पष्ट आर्डर दिया है कि यदि दो साल की सजा हुई और दोष सिद्ध होने के बाद उसके ऊपर रोक नहीं लगी, तो जनप्रतिनिधि की सदस्यता खत्म हो जाती है। लोकसभा में केवल इसकी पुष्टि होनी थी।
लोकसभा अध्यक्ष ने सिर्फ कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया है। उनको निर्णय लेने की जरूरत नहीं है, बल्कि कानून के आधार पर उन्होंने आदेश जारी किया है। संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ई) के प्रावधानों के संदर्भ में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के आदेश निकाला गया है।
राहुल गाँधी ने एक अन्य झूठ बोला कि मैंने लन्दन में देश के खिलाफ कुछ नहीं बोला था। राहुल गाँधी की राजनीति बिलकुल स्पष्ट है जब उनकी पार्टी चुनाव में हारती है तो विदेश में जाकर विलाप करते हैं, उनकी यही सोच है कि हम जीतेंगे तो भारत का लोकतंत्र ठीक है, हारेंगे तो लोकतंत्र ख़राब है। जीतेंगे तो चुनाव आयोग ठीक, हारेंगे तो चुनाव आयोग ख़राब। राहुल जी की यही राजनीति है कि उनके पक्ष में फैसला आएगा तो न्यायलय निष्पक्ष है, विपक्ष में फैसला आया तो न्यायालय कमजोर है।