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धर्मगुरु श्री श्री रवि शंकर ने आईआईटी दिल्ली में दिए अपने वक्तव्य में युवाओं से पूर्व के स्वनुभवों से बड़े उद्देश्य के लिए चिंता करने का किया आह्वान

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हम स्वयं के अनुभवों की एक स्मृति के द्वारा मन को एक ऐसी स्थिति में ले जा सकते हैं, जहां कोई चिंता नहीं है। यदि आप भविष्य को लेकर चिंतित हैं अथवा आपको लगता है कि भविष्य अंधकारमय या अनिश्चित है, तो मैं चाहूँगा कि आप पीछे मुड़कर देखें कि यह पहली बार नहीं है जब आप ऐसा अनुभव कर रहे हैं। आप पहले भी चिंतित हुए हैं। क्या आपको वह समय याद है जब आप कॉलेज में प्रवेश पाने या नौकरी पाने को लेकर अनिश्चित थे। जैसे आप आत्म-संदेह और चिंता के उन क्षणों के बाहर निकल आये, वैसे ही आप इन क्षणों को भी पार कर लेंगे।

दूसरी बात है अपनी कुछ नया करने की भावना और स्वप्न देखने की क्षमता पर विश्वास करना। जो लोग चिंता करते हैं वे स्वप्न नहीं देख सकते। छात्रों और युवाओं के रूप में, अब आपको यह स्वप्न देखना शुरू कर देना चाहिए कि आप समाज को क्या लौटा सकते हैं। यदि आप यह सोचते रहेंगे कि आपको इस दुनिया से क्या मिलने वाला है, तो चिंता का कोई अंत नहीं होगा। लेकिन यदि आप विचार करते हैं कि ‘मुझे इतनी अच्छी शिक्षा दी गई है और अब मुझे उन उपायों के विषय में सोचना शुरू करना चाहिए जिनसे मैं योगदान करने की शुरुआत कर सकता हूँ; मैं अर्थव्यवस्था बढ़ाने में कैसे सहायता कर सकता हूँ; मैं कैसे लोगों को एक साथ ला सकता हूँ; मैं किस तरह से समाज में बढ़े मतभेदों को मिटा सकता हूँ’ यह विचार प्रक्रिया आपको छोटी-छोटी चिंताओं से उबरने में सहायता करेगी। अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाना और किसी बड़े उद्देश्य के बारे में चिंता करना आपके लिए कुछ विशेष लेकर आएगा।

उन्होंने कहा कि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं लेकिन वास्तव में सफल होने का क्या अर्थ है? अटूट आत्मविश्वास और न मुरझाने वाली मुस्कान सफलता की निशानी है। यदि आप सफलता का पीछा करते हैं तो मैं आपसे कहता हूँ, आप अपनी क्षमताओं को नहीं जानते। आप सोचते हैं कि किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करना एक बड़ी सफलता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि आप जो आप कर सकते हैं आप उन सभी चीज़ों से अनजान हैं । उदाहरण के लिए, आप यह नहीं कहते कि आपने अपना फ़ोन सफलतापूर्वक संचालित किया या कोई नंबर डायल किया। आप सफलता का दावा तब करते हैं जब आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपको लगता है कि आपके लिए कठिन था। फिर जब आप इसे प्राप्त करते हैं तो आपको गर्व अनुभव होता है। मैं कहूंगा, बस भीतर देखें । आप अपनी क्षमताओं को कम आंक रहे हैं; दूसरे, सफलता के पीछे भागना व्याकुलता को बढ़ाना है। कोई व्यक्ति कोई भी कार्य बिना सफलता की इच्छा के नहीं करना चाहता। यह आत्मविश्वास कि मैं जो भी हाथ में लूंगा, उसे पूरा करके दिखाऊंगा, एक के बाद एक सफलता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है ।

श्री श्री ने बताया कि मन का स्वभाव ही ऐसा है। कोई आपकी दस प्रशंसा करता है और एक निंदा करता है; मन केवल उस एक निंदा से चिपका रहेगा। इसी प्रकार निरंतर मन या तो अतीत की घटनाओं को लेकर क्रोध अथवा पश्चाताप से ग्रस्त रहता है या फिर भविष्य को लेकर भयभीत और चिंतित रहता है। इस ज्ञान का एहसास मात्र ही मन को वर्तमान क्षण में ले आता है।

पिछली घटना समाप्त हो जाने पर भी मन अतीत में ही अटका रहता है। अतीत से चिपके इस मन को कैसे नियंत्रित करें? मन को अतीत से मुक्त करना ही ध्यान का जादू है। प्राणायाम करें, ध्यान करें, गाएं, नृत्य करें, कूदें, कोई खेल खेलें। जब हम इन सभी गतिविधियों में संलग्न होते हैं या गहरे विश्राम में जाते हैं, तो हम अपने मन पर नियंत्रण रखना शुरू कर देते हैं।

उन्होंने हानिकारक आदतों और व्यवहार के पैटर्न से बाहर निकलने का तरीका तरीका बताते हुए कहा कि यदि आप कुछ कर रहे हैं या आपकी कोई ऐसी आदत है जो आपको गलत लगती है, तो उससे बाहर निकलने का एक तरीका है। आप अक्सर किसी बुरी आदत के प्रति आकर्षण और अपराध बोध के बीच फंसे रहते हैं। इसलिए थोड़े समय के लिए संकल्प लें। उदाहरण के लिए, अगर आप फोन की लत से जूझ रहे हैं तो प्रण लें कि बस अगले तीन दिन आप बिना फ़ोन के रहेंगे। सुनिश्चित करें कि आप समयबद्ध प्रतिज्ञा लें। इससे बुरी आदत पर नियंत्रण पाने की आपकी इच्छाशक्ति धीरे-धीरे बढ़ेगी। गुरुदेव ने कहा कि जीवन अच्छे और बुरे अनुभवों का मिश्रण है। आप केवल एक प्रकार के अनुभव की कामना नहीं कर सकते। उन सबको समग्रता से लें और आगे बढ़ते रहें। तभी आप वास्तव में जीवन का जश्न मना सकते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर पैंतालीस सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है। हमें हाथ मिलाना होगा और लोगों को अवसाद, आक्रामकता और आत्मघाती प्रवृत्ति से उबरने में सहायता करनी होगी। ध्यान और सुदर्शन क्रिया की श्वास तकनीक जैसे उपकरण बेहतर मानसिक स्वास्थ्य की इस लड़ाई में बहुत सहायता कर सकते हैं जो हर व्यक्ति और युवा का जन्मसिद्ध अधिकार है। श्री श्री के मुताबिक भक्ति भय को दूर करती है मन के विशाल और विस्तृत होने पर प्रेम या भक्ति का उदय होता है। यदि मन चिंता, शंका और तनाव से भरा है तो वहाँ प्रेम नहीं मिलता। मन में भक्ति का पुष्प खिले, इसके लिए हमें जानना चाहिए कि हम एक उच्च शक्ति या परमात्मा से जुड़े हैं। जब ऐसा अपनापन होता है, तो भय विलीन हो जाता है; आपके भीतर उत्साह और ऊर्जा भर जाती है और आपकी मुस्कान अटल हो जाती है। तब आप अत्यंत आनंद का अनुभव करेंगे, और तब युवाओं को नशीली दवाओं और शराब जैसी चीज़ों में आनंद नहीं मिलेगा। यही आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा है.

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