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प्रदेश में 100 करोड़ रुपए की लागत से जल भंडारण संरचनाएं होंगी तैयार,कृषि-बागवानी क्षेत्र में निभाएंगी महत्वपूर्ण भूमिका

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वन मन्त्री राकेश पठानिया ने आज जल भंडारण योजना पर आयोजित एक कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रदेश में आगामी दो वर्षों में 8 से 10 लाख लीटर जल ग्रहण क्षमता की लगभग तीन हजार बड़ी जल भंडारण संरचनाएं तैयार की जाएंगी। जल भंडारण योजना के क्रियान्वयन पर 100 करोड़ रूपये व्यय किए जाएंगे और इस वित्त वर्ष के दौरान 150 जल भंडारण संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा।
वन मंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की लभग 90 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है जिनकी आय का मुख्य स्त्रोत कृषि व बागवानी है। इसलिए ग्रामीण समुदाय को वर्ष भर सिचांई सुविधा उपलब्ध करवाने से उनकी आय में कई गुणा वृद्धि हो सकती है। जल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए जल भण्डारण योजना का शुभारम्भ किया गया है। योजना के तहत वन क्षेत्रों में जल संग्रहण के लिए जल भंडारण संरचनाओं व बांधांे का निर्माण किया जाएगा। जल भंडारण बांधों के निमार्ण से भूमि कटाव को रोकने में सहायता मिलेगी और साथ ही भूजल के स्तर में भी वृद्धि होगी।
राकेश पठानिया ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण कम वर्षा होने तथा एक वर्ष में सूखे दिनों की संख्या बढ़ने की स्थिति हमारे सामने आई है। वनों में जल भण्डारण संरचनाओं से पानी को अधिक समय तक रोकने मेें सहायता मिलेगी। इन संरचनाओं को हमें तकनीकी पहलुओं की जानकारी के साथ समयबद्ध रूप से बनाना होगा जिससे एकीकृत जल का निरन्तर उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त हमें जल संरचनाओं के जलागम क्षेत्रों में भी छोटे-छोटे चैक डैम का निर्माण करना होगा जिससे प्रमुख सरंचनाओं में गाद इत्यादि नहीं भरेगी और अधिक समय तक कार्य कर पांएगी।
अतिरिक्त मुख्य सचिव वन निशा सिंह ने वन विभाग के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें मिलकर इस योजना की सफलता के लिए कार्य करना होगा। प्रधान मुख्य अरण्यपाल वन बल डाॅ. सविता ने कहा कि हमें जलागम क्षेत्र के वनों में भी सुधार करना होगा ताकि जल एवं मृदा को वनों में ही रोका जा सके तथा धरती के जल स्तर में वृद्धि की जा सके।
प्रधान मुख्य अरण्यपाल प्रबन्धन राजीव कुमार, प्रबन्ध निदेशक वन विकास निगम अजय श्रीवास्तव, मुख्य परियोजना निदेशक आई.डी.पी. डाॅ. पवनेश, मुख्य परियोजना अधिकारी जाईका नागेश गुलेरिया तथा विभिन्न वन वृत्तों के मुख्य अरण्यपाल एवं अरण्यपालों ने कार्यशाला में भाग लिया।

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